% zauq02.s isongs output
\stitle{ab to ghabaraa ke ye kahate hai.n ke mar jaae.nge}
\singers{Zauq #2}
अब तो घबरा के ये कहते हैं के मर जायेंगे
मर के भी चैन न पाया तो किधर जायेंगे
तुम ने ठहराई अगर ग़ैर के घर जाने की
तो इरादे यहाँ कुछ और ठहर जायेंगे
हम नहीं वो जो करें ख़ून का दावा तुझ पर
बल्क़ि पूछेगा ख़ुदा भी तो मुकर जायेंगे
आग दोज़ख़ की भी हो जायेगी पानी पानी
जब ये आसी अर्क़-ए-शर्म से तर जायेंगे
%[dozakh = hell; aasii = sinner; arq = sweat]
शोला-ए-आह को बिजली की तरह चमकाऊँ
पर मुझे डर है, कि वो देख कर डर जायेंगे
लाये जो मस्त हैं तुर्बत पे गुलाबी आँखें
और अगर कुछ नहीं, दो फूल तो धर जायेंगे
नहीं पायेगा निशाँ कोई हमारा हर्गिज़
हम जहाँ से रविश-ए-तीर-ए-नज़र जायेंगे
%[ravish-e-tiir-e-nazar = like an arrow thrown from the eye = a fleeting glance]
पहुँचेंगे रहगुज़र-ए-यार तलक हम क्यूँ कर
पहले जब तक न दो आलम से गुज़र जायेंगे
'ज़ौक़' जो मदरसे के बिगड़े हुए हैं मुल्लाह
उनको मैख़ाने में ले आओ सँवर जायेंगे