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% zauq03.s isongs output
\stitle{aa.Nkhe.n merii talavo.n se mal jaaye to achchhaa}
\singers{Zauq #3}
% Contributed by Yogesh Sethi



आँखें मेरी तलवों से मल जाये तो अच्छा
है हस्रत-ए-पा-बोस निकल जाये तो अच्छा

%[paa-bos=kissing the feet;]

जो चश्म के बे-नम हों, वो हो कोर तो बहतर
जो दिल के हो बे-दाग़, वो जल जाये तो अच्छा

%[kor=sightless;]

फ़ुर्क़त में तेरी तार-ए-नफ़स सीने में मेरे
काँटा सा खटकता है, निकल जाये तो अच्छा

%[furqat=separation; taar-e-nafas=here it implies pain like needles pricking]

वो सुबह को आये तो करूँ बातें मैं दो-पहर
और चाहूँ के दिन थोड़ा स ढल जाये तो अच्छा

ढल जाये जो दिन भी तो इसी तरह करूँ शाम
और चाहूँ के गर आज से कल जाये तो अच्छा

जब कल हो तो फिर वही करूँ कल की तरह से
गर आज क दिन भी यूँ ही टल जाये तो अच्छा

अल-क़िस्सा नहीं चाहता मैं, जाये वो याँ से
दिल उसका यहीं गरचे बहल जाये तो अच्छा

%[al-qissaa= in short]