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\stitle{din ko bhii itanaa a.Ndheraa hai mere kamare me.n}
\singers{Zafar Gorakhpuri #4}
दिन को भी इतना अँधेरा है मेरे कमरे में
साया आते हुये डरता है मेरे कमरे में
ग़म थका हारा मुसाफ़िर है चला जायेगा
कुछ दिनों के लिये ठहरा है मेरे कमरे में
सुबह तक देखन अफ़साना बना डालेगा
तुझको एक शख़्स ने देखा है मेरे कमरे में
दर-ब-दर दिन को भटकता है तसव्वुर मेरा
हाँ मगर रात को रहता है मेरे कमरे में
चोर बैठा है कहाँ सोच रहा हूँ मैं "ज़फ़र"
क्या कोई और भी कमरा है मेरे कमरे में