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\stitle{kyaa ummiid kare ham un se jin ko vafaa maaluum nahii.n}
\singers{Zafar Gorakhpuri #7}



क्या उम्मीद करे हम उन से जिन को वफ़ा मालूम नहीं
ग़म देना मालूम है लेकिन ग़म की दवा मालूम नहीं

जिन की गली में उम्र गँवा दी जीवन भर हैरान रहे
पास भी आके पास न आये जान के भी अंजान रहे
कौन सी आख़िर की थी हमने ऐसी ख़ता मालूम नहीं

ऐ मेरे पागल अर्मानों झूठे बंधन तोड़ भी दो
ऐ मेरी ज़ख़्मी उम्मीदों दिल का दामन छोड़ भी दो
तुम को अभी इस नगरी में जीने की सज़ा मालूम नहीं