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\stitle{ab ye aa.Nkhe.n kisii taskiin se taabi.ndaa nahii.n}
\singers{Zia Jalandhari #3}
अब ये आँखें किसी तस्कीन से ताबिंदा नहीं
मैं ने रफ़्ता से ये जाना है के आइंदा नहीं
दिल ये विराँ दम-ए-इसा है गये वक़्त की याद
कौन सा आलम का ये रफ़्ता है के ज़िंदा नहीं
तू भी चाहे तो न आयेगी ये वो बीती हुई रात
है वही चाँद मगर वैसा दरख़्शंदा नहीं
कभी ग़ुँचे को महकने से कोई रोक सका
शौक़ अगर है तो इज़ाख़ार से शर्मिंदा नहीं